सूक्ष्म जीवों की उपलब्धता का सरल समाधान ताजा गोबर

(जीवाणु खाद या जैव उर्वरक या बायो फर्टिलाइजर के रूप में ताजा गोबर)

वर्तमान समय में कृषि उत्पादन को बढ़ाना सभी कृषकों एवं कृषि चिंतको के सामने प्रमुख चुनौती है। सघन कृषि से पोषक तत्त्वों का स्तर गिरने की खबरे हर रोज पढने में आ रही है। जैविक खाद से इस समस्या का समाधान हो रहा है। अधिकांश किसान सन्तुलित मात्रा में जैविक खाद के उपयोग के बावजुद पर्याप्त उत्पादन नही ले पा रहे और रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से भूमि के स्वास्थ्य पर विपरित प्रभाव पड़ रहा है।

ऐसी स्थिति में प्रकृति की पोषण प्रणाली को समझ कर धरातल पर लागू करना आवश्यक है। प्रकृति की पोषण प्रणाली में जैविक खाद (जिसको जीवांश कहा जाता है) के साथ सूक्ष्म जीवाणु सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते है।

वनस्पत्ति अपने पोषण हेतु अपने ही पतों को (अपशिष्ट) जीवांश रूप मे पतझड़ में गिरा देती है। सूक्ष्म जीवाणु उक्त पतों (जीवाश/अपशिष्ट) को विघटित कर जैविक खाद में बदलते है। इसी वनस्पति को यदि शाकाहारी जीव जन्तु खाते है तो भूमि पर अपना अपशिष्ट छोड़ते है और सूक्ष्म जीवाणु उक्त अपशिष्ट को खाद में बदलते है शाकाहारी को मांसाहारी खाते है तो वे भी अपना अपशिष्ट भूमि पर छोड़ते है और सूक्ष्म जीवाणु उक्त अपशिष्ट को जैविक खाद में बदलते है उपरोक्त प्राकृतिक पोषण प्रणाली में अपशिष्ट/जीवांश/जैविक खाद के साथ जीवाणुओं को सर्वोत्तम बताया गया। खेती किसानी में फसल अपशिष्ट/जीवांश के लिए हरी खाद सबसे सरल विकल्प है जिसमें किसी दलहनी फसल (ढैचा, सनई, मूंग, उड़द एवं ग्वार आदि) को वानस्पतिक बढ़वार के बाद एवं पुष्पन के समय भूमि में रोटावेटर या हैरो आदि से मिलाया जाता है

जैविक खाद के लिए हमारे अनुसंधान केन्द्र, द्वारा विकसित सरल खाद की विधि (जिसमें 1 टन किसी भी जानवर के अपशिष्ट को खाद में बदलने के लिए 2 किलोग्राम गुड़, 30 किलोग्राम ताजा गोबर और 30 लीटर छाछ का उपयोग होता है) को आज किसान आसानी से अपना रहे है।

अपशिष्ट एवं जीवांश के बाद सूक्ष्म जीवाणुओं की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। क्योंकि जीवाणु ही अपशिष्ट का अपघटन करते है एवं भूमि में उपलब्ध अघुलनशील या कार्बनिक तत्त्वों को अकार्बनिक एवं घुलनशील रूप में बदलते है। पौधे भूमि से समस्त पोषण अकार्बनिक एवं घुलनशील स्वरूप में ही लेते है जैसे फास्फोरस को घुलनशील अवस्था या फाॅस्फेट में परिवर्तित करने का काम सूक्ष्म जीवाणु (जीवाणु या फगंस दोनों) करते है। वायुमण्डलीय नत्रजन को पौधों को उपलब्ध रूप अर्थात् नाइट्रेट में परिवर्तन करने का कार्य जीवाणु ही करते है अर्थात् जीवांश, अपशिष्ट एवं जैविक खाद के साथ यदि जीवाणु कल्चर का उपयोग होने लगे तो उत्पादकता मे वृद्धि तथा मिट्टी की जैविक, रासायनिक एवं भौतिक संरचना में सुधार आएगा।

जीवाणु कल्चर के वर्तमान में कई प्रकार की व्यवस्थाएं संचालित है जिसमें जैव उर्वरक/बायो फर्टिलाइजर एक प्रमुख व्यवस्था है जो चारकोल या पाउडर या किसी तरल माध्यम में बोतल, शीशी या कैप्सूल रूप में बाजार में उपलब्ध है। वहीं जैविक कृषि पर कुछ प्रयोगकर्ताओं द्वारा भी जीवाणु कल्चर खेत पर तैयार करने की सरल विधियाँ विकसित की गई, जो  गुड़, गोबर, बेसन, छाछ, गौमूत्र आदि से तैयार होते है।

श्रीरामशान्ताय जैविक कृषि अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केन्द्र कोटा के द्वारा जीवाणु कल्चर से सम्बन्धित समस्त उत्पादों के समकक्ष केवल ताजे गोबर को ही जीवाणु कल्चर के रूप में स्थापित करने हेतु गहन अनुसंधान किया गया, जिसके परिणाम भी सुखद प्राप्त हुए अर्थात् केवल ताजा गोबर समस्त जीवाणु कल्चर के समकक्ष एवं उससे उत्कृष्ट परिणाम देता है, जिससे फसल उत्पादकता एवं भूमि की उर्वरता में परिवर्तन देखने को मिला।

ताजा गोबर के उपयोग से लाभ

  1. इसके प्रयोग से फसलों की पैदावार में वृद्धि होती है।
  2. मृदा स्वास्थ्य को रासायनिक उर्वरको, दीमकनाशी, खरपतवारनाशी के दुष्प्रभाव से बचाते है।
  3. किसी भी प्रकार का बाजारू कल्चर, कैप्सूल, घोल, पाउडर आदि जैव उर्वरक क्रय नही करने से पैसा बचेगा एवं किसी भी प्रकार का घोल बनाने हेतु गुड़, बेसन, छाछ, गौमूत्र ड्रम की आवश्यकता नही पड़ेगी वस्तुतः श्रम एवं साधन की आवश्यकता कम रहेगी, लागत कम आएगी।
  4. अन्य विधियों एवं उत्पादों की तुलना में बहुत सरल व्यवस्था है जिसमें कृषकों की स्वीकार्यता बढेगी,
  5. ताजें गोबर के प्रयोग से देशी गाय का महत्व बढ़ेगा, उपयोगिता बढे़गी वस्तुतः पशुपालन को बढावा मिलेगा।
  6. खेत खेत में ड्रम की जगह गाय का महत्त्व बढे़गा।
  7. ताजे गोबर मेे उपलब्ध लाभदायक जीवाणु एवं फंगस से भूमि में हानिकारक जीवाणु एवं फंगस, सूत्रकृमि का नियन्त्रण आसानी से होगा।
  8. ताजे गोबर में उपलब्ध लाभदायक जीवाणु, फंगस से मिट्टी में नत्रजन एवं फास्फोरस एवं पोटाश की उपलब्धता बढ़ती है जो पौधो के लिए आवश्यक तत्त्व है।
  9. जैव अपशिष्ट का अपघटन जल्दी होगा, जैविक कार्बन में वृद्धि होगी।
  10. भूमि की जैविक, रासायनिक एवं भौतिक संरचना में सुधार आएगा।
  11. उत्पाद की गुणवत्ता, मात्रा एवं भण्डारण क्षमता में विस्तार आएगा
  12. बीजों की अकुंरण क्षमता में वृद्धि होती है।
  13. प्रकृति एवं पर्यावरण के लिए हितकारी है।
  14. देशी गाय के ताजे गोबर के उपयोग से भूमि की आन्तरिक समूह में निवासित कैचुएं को बढावा मिलता है जिससे भूमि का भुरभुरापन बढता है एवं जलधारण क्षमता में इजाफा होता है।
  15. खड़ी फसल में बढवार हेतु ताजा गोबर अभिनव उत्पाद है।
  16. विदेशी मुद्रा की बचत होती है।

ताजा गोबर प्रयोग विधि

1. मृदा उपचार खेत में खाद डालते समय 100 किलोग्राम प्रति एकड़ (2.5 बीघा) ताजा गोबर खाद के साथ मिलाकर फैके।

2. बुवाई पूर्व खाद नहीं दे पाते है तो प्रत्येक सिंचाई या बारिश के समय खड़ी फसल में 100 किलोग्राम प्रति एकड़ (2.5 बीघा) ताजा गोबर निम्नानुसार दे सकते है –

  • बहते पानीे में घोल बहा कर:- इसके लिए खेत के किनारे पर मटके में 100 किलोग्राम ताजा गोबर घोल प्रति एकड़ कर उसके नीचे के छिद्र से रस बहने दे, ताकि पूरे खेत में गोबर रस बहता चले।
  • किनारे पर बोरी या झालीदार थैली में ताजा गोबर भर कर रखें, धीरे धीरे गोबर रस बहता जाएगा।
  • बहते पानी या चलती बारिश में ताजे गोबर के छोटे छोटे लड्डू बनाकर फैके।
  • फव्वारे या ड्रिप संयन्त्र में वेन्चुरी के माध्यम से ताजे गोबर का घोल बनाकर 2 बार छानकर फिर वेन्चुरी के माध्यम गोबर रस फव्वारे या ड्रिप में चला सकते है। इस हेतु गोबर का घोल बनाकर कुछ घन्टे पहले भी रख सकते है। ताकि गोबर अवशेष नीचे बैठ जाएगे, रस ऊपर आ जाएगा।

3. बीजोपचार – एक लीटर पानी में 100 ग्राम ताजा गोबर का घोल बनाकर बीजो पर छिड़के और उसमें मिलाऐं ताकि बीज पर अच्छी हल्की परत चढ जाऐं फिर बीजो को छायादार स्थान पर सुखाकर तुरन्त                      बुवाई करे।

  • पौध उपचार:- धान, सब्जी, फलदार पौधों की जड़ों को डुबाने हेतु 10 लीटर पानी में 1 किलोग्राम ताजा गोबर घोल बनाऐं, फिर इसमें जड़ों को डुबाऐं, 10 मिनट तक पूरे बंडल (जड़ भाग) डुबा रहे, इसके बाद तुरन्त खेत में रोपाई करे।

फलदार एवं छायादार पेड़ो में ताजा गोबर घोल देने हेतु नीचे दिए गए विवरणानुसार ताजा गोबर को घोल कर पेड़ के चारों ओर गोल घेरे में सिंचाई के समय पिलाऐं।

समय
1 वर्ष का पेड़ 1 किलोग्राम ताजा गोबर + 10 लीटर पानी तने से एक फीट दूर।
2 वर्ष का पेड़ 2 किलोग्राम ताजा गोबर + 20 लीटर पानी तने से दो फीट दूर।
3 वर्ष का पेड़ 3 किलोग्राम ताजा गोबर + 30 लीटर पानी तने से दो फीट दूर।
4 वर्ष का पेड़ 4 किलोग्राम ताजा गोबर + 40 लीटर पानी तने से तीन फीट दूर।
5 वर्ष का पेड़ 5 किलोग्राम ताजा गोबर + 50 लीटर पानी तने से तीन फीट दूर।

उसके बाद हर वर्ष 5 किलोग्राम ताजा गोबर 50 लीटर पानी तने से तीन फीट दूर मिलाएं।

धान में विशेष प्रयोग :- जब भी पानी भरते है तो पानी के साथ ताजा गोबर का घोल 100 किलोग्राम प्रति एकड़ (2.5 बीघा) जरूर दे।

सब्जियों में :- सिंचाई के साथ-साथ हर बार ड्रेन्चिग/घोल बना कर पौधो को झारे से पिलाई जाए।

किचन गार्डन एवं :- घरों में लगाए गए पेड़ों में बढवार या घरेलू वृक्षों में फुटान रूकी हुई है तो 10 लीटर पानी में 1 किलोग्राम गोबर घोल कर पिलाएं हर सप्ताह।

ताजे गोबर का अर्थ :- देशी गाय का गोबर जिसमें उपलब्ध नमी 70 प्रतिशत से अधिक हो, अर्थात गीला हो, छाया में पड़ा हो, ताजा ही है। एक सप्ताह तक छाया में पड़ा गोबर ताजा ही है।

भ्रम/शंका :- कई बंधुओ को शंका रहती है कि ताजा गोबर से खेत में नुकसान होगा, दिमक की समस्या हो जाएगी तो उनको जानकारी में रहे कि ताजा गोबर वो भी केवल 100 किलोग्राम प्रति एकड़ (2.5 बीघा) में घोल बनाकर सिंचाई में देते है तो अवशेष बचने का सवाल नही उठता वस्तुतः बिना सुखे अवशेष दिमक का प्रभाव पडे़गा नही। सुखा गोबर फैका गया तो समस्या आएगी इसलिए यह समझना है कि ताजा गोबर ही हमारा जीवाणु कल्चर है, सुखा गोबर – कच्चा अपशिष्ट है, सड़ा गोबर कम्पोस्ट है और हमें काम लेना है जीवाणु कल्चर अर्थात ताजा गोबर।

अतिरिक्त बिन्दु :-

  1. ताजे गोबर को घर से ला कर खेत में भी छायां में ही रखे, छायां नही है तो बोरी, टाट या फसल अपशिष्ट, कचरे से ढके।
  2. ताजे गोबर से उपचारित खाद, दवाई, बीज और पौध आदि को भी छायां में रखे।
  3. बुजुर्ग गायों का ताजा गोबर सर्वोत्तम प्रभावशील रहता है। इसलिए बिना दुध वाली गायों को पालन भी कर सकते है।
  4. बताई गई मात्रा से कम एवं अत्यधिक उपयोग नही करें।

ताजा गोबर महज कल्चर है, न कि खाद अर्थात् खाद आपको अलग से डालनी ही है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *