सरसों – राया की उन्नत किस्में एवं उत्पादन तकनीक

सरसों – राया की उन्नत किस्में एवं उत्पादन तकनीक

राया – सरसों मुख्यतः कोटा संभाग, गंगानगर, हनुमानगढ़, उदयपुर, बाँसवाड़ा एवं डूँगरपुर जिले में बोई जाने वाली प्रमुख फसल है, सरसों की जैविक खेती की कृषि विधियाँ इस प्रकार हैः-

सीधी बुवाई हेतु उन्नत किस्में – पूसा सरसों – 28 (एन.पी.जे.-124), पूसा सरसों – 27 (ई.जे. – 17), पूसा सरसों –  25 (एन.पी.जे.-112), पूसा तारक – (ई.जे. – 13), पूसा महक  (जे.डी. – 6), पूसा अग्रणी – (एस. ई. जे. – 2),

समय पर (अक्टूबर) बिजाई की किस्में :-

पूसा जगन्नाथ (वी. एस. एल.-5), पूसा विजय (एन.पी.-5),

पछेती बिजाई (नवम्बर) के लिए किस्में :-

पूसा सरसों – 26 (एन.पी.जे. – 113)

कम ईरूसिक अम्ल वाली किस्में :-

पूसा सरसों – 30 (एल.ई.एस. – 43), पूसा सरसों – 29 (एल.ई.टी. – 36), पूसा सरसों – 24 (एल.ई.टी. – 18), पूसा सरसों – 22 (एल.ई.टी. – 17), पूसा सरसों – 21 (एल.ई.टी. -1- 27), पूसा करिश्मा – (एल.ई.टी. -39)

करण राई की किस्में :-

पूसा आदित्य (एन.पी.सी. – 9), पूसा स्वर्णिम (आई.जी.सी. – 01)

उन्नत उत्पादन तकनीक :-

खेत का चुनाव :- बहुत रेतीली व नमी वाली भूमि को छोड़कर सभी प्रकार की भूमि उपयुक्त है। अधिक पैदावार के लिए बलुई दोमट से दोमट मिट्टी वाली भूमि उपयुक्त है।

खेत की तैयारी :- वर्षा के दिनों में जुताई इस हिसाब से करें कि खेत में खरपतवार एवं पिछली फसल के अवशेष न जमनें पाएं। वर्षा के बाद एक दो जुताई देकर खेत में नमी संरक्षित करें। बुवाई से पहले दो बार जुताई कर खेत को तैयार करें।

बुवाई का समय :-

अगेती            :         1 – 10 सितम्बर

मध्यम           :          अक्टूबर माह

पछेती           :          1 – 15 नवम्बर

पूर्वोत्त्तर        :          मध्य नवम्बर तक

दूरी       : कतार से कतार 30 – 45 सैंटीमीटर, पौधे से पौधे 10 – 15 सैंटीमीटर

गहराई  : बीज 2.0 – 2.5 सैंटीमीटर की गहराई पर डालें।

छटाई   : बिजाई के 15 से 20 दिन बाद या प्रथम सिंचाई से पूर्व छँटाई कर पौधे से पौधे की दूरी 10 – 15 सैंटीमीटर कर दें।

बीज की मात्रा :-  3.0 – 4.0 किलो ग्राम प्रति हैक्टयर

बीज उपचार   :- बीज उपचार के लिए 10 ml गोमूत्र + 1 ग्राम चूना को प्रति किलोग्राम बीज के साथ उपचारित करें।

खाद :-  4 टन सरल कम्पोस्ट प्रति एकड़ व 100 किलोग्राम जिप्सम प्रति एकड़ बुवाई से पूर्व देना है।

इसके बाद प्रत्येक फसल की बुवाई के 30 दिन बाद खेत में 2.5 क्विंटल प्रति एकड़ सरल खाद देना और भी ज्यादा लाभकारी है।

खाद का प्रयोग मिट्टी परीक्षण के आधार पर करें। बारानी अवस्था में खाद की मात्रा आधी कर दें।

पर्णीय छिड़काव :- सरसों की फसल में 25-30 दिन की अवस्था पर गोमूत्र 1.5 लीटर + चूना दो ट्यूब प्रति टंकी (13.5 लीटर पानी) का छिड़काव करें व फसल में दाना बनने वाली अवस्था पर सप्तधान्यांकुर का छिड़काव करें।

सप्तधान्यंकुर :- (सात अनाजों को अंकुरित कर के बनाया गया ज्यूस)

उद्देश्य :- उत्पादन की मात्रा एवं गुणवत्ता वृद्धि हेतु ।

विधि :- बुवाई के 70 दिन बाद या अनाज की बालियों में दाने की दूधिया अवस्था में एवं छोटी फलियां बनने की अवस्था, फूलों मे कलीयां निकलने की अवस्था में सप्तधान्यंकुर ज्यूस बनाकर छिड़काव करें। इसके लिए तिल (काले या सफेद कोई भी), मूंग, उड़द, लोबिया, अरहर/तुअर, मसूर, गैहूँ, चने प्रत्येक 100-100 ग्राम ले। सबसे पहले दिन एक कटौरी में तिल भिगो दे, दूसरे दिन उपरोक्त शेष बीजों को रात भर के लिए पानी में भिगो दे। तीसरे दिन सातों प्रकार के बीजों को पानी से निकालकर एक कपड़े में खाली कर के पोटली बनाकर के टांग दे व पानी को सुरक्षित रख दें व अगले दिन घोल में मिला दें। फिर सभी बीजों को अंकुरित होने के उपरान्त पिसकर चटनी बना दे। उसके बाद 10 लीटर गौमूत्र व गुड़ 250 ग्राम मिला लें। 200 लीटर पानी में मिलाकर दो घण्टे के लिए बोरी या कपडे़ से ढक कर रख दे उसके बाद छानकर फसल पर छिड़काव करें। (इस घोल को 48 घण्टे के भीतर उपयोग करें।

सिंचाई   :-   वर्षा एवं सिंचाई की उपलब्धता के आधार पर

उपलब्धता एक सिंचाई दो सिंचाई  तीन सिंचाई
प्रथम बुवाई के 50 – 60 दिन बाद बुवाई के 40 – 45 दिन बाद बुवाई के 35 – 40 दिन (बढ़वार पर)
दूसरी बुवाई के 90 – 100 दिन बाद प्रथम सिंचाई के 35 – 40 दिन (फूल शुरू होने पर)
तीसरी दूसरी सिंचाई के 30 – 35 दिन (फलियाँ शुरू होने पर)

निराई – गुड़ाई  :- फसल में एक – दो निराई गुड़ाई अवश्य करें।

कीट नियंत्रण :-

पेंटेड बग (बगराडा, झारा, धोलिया, चितकबरा कीट) व मक्खी नियंत्रण :-

प्रकोप की प्रारम्भिक अवस्था में कीटों को हाथ से एकत्र करके नष्ट कर दें।

अण्डों को नष्ट करने के लिए फसल काटने के बाद गहरी जुताई करें।

छोटे पौधों में सिंचाई करने से पौधे इस कीट के प्रकोप को सहन कर पाने में काफी हद तक सक्षम हो जाते है।

पकी हुई फलियों से बीज जल्दी निकालें।

शुरूआत में फसल पर इस कीट का प्रकोप होने पर 1 प्रतिशत नीम तेल (300 PPM) प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें व चुल्हे की राख का बुरकाव करें या गौमूत्र (1.5 ली.) + दशपर्णी अर्क (1.5 ली.)/टंकी के अनुसार छिड़काव करें।

नोट: – शुरूआत में 1 हफ्ते के अन्दर पेन्टेड बग की समस्या के नियन्त्रण के लिए 7 दिन के अन्तराल पर राख का बुरकाव करें।

चेपा/एफिड :-

सरसों/राया की समय पर बुवाई (15 से 25 अक्टूबर तक) करने से चेपा कीट का फसल पर आक्रमण बहुत कम होता है। चेपा कीट के प्रकोप से प्रभावित टहनियों को प्रारम्भिक अवस्था में ही तोड़कर नष्ट कर दें।

परजीवी मित्र कीट डायरेटिला रेपी इस कीट को परजीवीयुक्त कर मार देता हैै। इसके अतिरिक्त परभक्षी कीट जैसें – काक्सीनेला सेप्टमपंकटाटा, क्राइसोपा, सिरफिड आदि। चेपा कीट के शिशु एवम् प्रोढ़ों को खाकर इस कीट की संख्या को बढ़ने से रोकते है।

चेपा के प्राकृतिक शत्रु (परभक्षी दुश्मन) कीट जैसें – काक्सीनेला, क्राइसोपा, सिरफिड आदि की कीटनाशकों से रक्षा करें। यदि इन कीटों की संख्या ज्यादा हो तो कीटनाशकों का प्रयोग न करें।

राया/सरसों की फसल में नत्रजन युक्त खाद की मात्रा सिफारिश के अनुसार ही देनी चाहिये। क्योंकि इनके अधिक प्रयोग से कीटों का आक्रमण ज्यादा होता है। दूसरी तरफ, पोटाशयुक्त खाद के प्रयोग से कीटों के प्रजनन व उत्सर्जन पर बुरा प्रभाव पड़ता है। अतः खाद को सन्तुलित व सिफारिश के अनुसार ही प्रयोग करना चाहिए।

नियन्त्रण :- जब कीट का प्रकोप औसतन 10 प्रतिशत पौधों पर या औसतन 25 कीट प्रति पौधा हो जाए तो 1 प्रतिशत नीम तेल (300 PPM) प्रति लीटर पानी की दर से या वर्टीसीलियम लेकानी 5-10 उस प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें। व इनमें से किसी एक कीटनाशक का प्रयोग करें।

सफेद मक्खी :-

नियन्त्रण :- इस कीट के नियन्त्रण हेतु नीम तेल 100 मि.ली./टंकी (15 लीटर पानी) या वर्टीसीलियम लेकानी 5-10 उस प्रति लीटर या छाछ 1.5 लीटर प्रति टंकी (15 लीटर पानी) की दर से छिड़काव करें।

गोभी की सुंडी (कैबेज बटरफलाई) :-

नियन्त्रण :- इस कीट के नियंत्रण के लिए दशपर्णी अर्क 1.5 लीटर प्रति टंकी (15 लीटर पानी) या नीम की नींबोली का अर्क 1.5 लीटर प्रति टंकी (15 लीटर पानी) में घोल बनाकर छिड़काव करें।

दस वनस्पतियों से निर्मित घोल की विस्तृत जानकारी (वनस्पति रस)

200 लीटर पानी                                                                      2 किलोग्राम गाय का गोबर

10 लीटर गोमूत्र                                                                       2 किलोग्राम करंज के पत्ते

2 किलोग्राम सीताफल के पत्ते                                                  2 किलोग्राम धतूरा के पत्ते

2 किलोग्राम तुलसी के पत्ते                                                       2 किलोग्राम पपीता के पत्ते

2 किलोग्राम गेन्दा के पत्ते                                                         5 किलोग्राम नीम के पत्ते

5 किलोग्राम बेल के पत्ते                                                           2 किलोग्राम कनेर की पत्ती

500 ग्राम तम्बाकू पीस कर या काटकर                                   500 ग्राम लहसुन चटनी

500 ग्राम पिसी हल्दी                                                              500 ग्राम तीखी हरी मिर्च

200 ग्राम अदरक या सौंठ

बनाने की विधि –

सर्वप्रथम एक प्लास्टिक के ड्रम में 200 ली. पानी डाले फिर इसमें 2 किलोग्राम गाय का गोबर और 10 ली. गोमूत्र मिला दें। अब इसमें नीम, करंज, सीताफल, धतूरा, बेल, तुलसी, आम, पपीता, करंज, गेन्दा की पत्ती की चटनी डालें और डण्डें से चलाएं फिर दूसरे दिन तम्बाकू, मिर्च, लहसुन, सौंठ, हल्दी डाले फिर डण्डें से चलाकर जालीकर कपडे़ से बन्द कर दें और 30 दिन छाया में रखा रहने दें, परन्तु प्रतिदिन सुबह शाम डण्डें से हिलाते जरूर रहें। यह घोल 1 माह में तैयार होगा। प्रति टंकी (15 ली. पानी) में 1.5 ली. घोल प्रभावी रहेगा। यह तीन – चार भण्डारित किया जा सकता है।

इस के अलावा अभी से ही नीम निम्बोंली, करंज बीज, राख, गौमूत्र आदि इक्कठा करें। जो आगे जा कर उपयोगी साबित होगी।

रोग नियन्त्रण :-

सफेद रोली (व्हाइट रस्ट/सफेद रतुआ) :-

नियन्त्रण :- बीज उपचार के अलावा बुवाई के 50 – 60 दिन बाद या बीमारी के लक्षण दिखाई देते ही स्यूडोमोनास 75 ग्राम + हल्दी 60 ग्राम/टंकी (15 लीटर पानी) या चूना 75 ग्राम + नीला थोथा 75 ग्राम/टंकी (15 लीटर पानी) या लाल दवा 15 ग्राम/टंकी (15 लीटर पानी) की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।

तना गलन (स्टैम राॅट) :-

नियन्त्रण :- इसके नियन्त्रण हेतु 100 किलोग्राम सरल कम्पोस्ट व 1 किलोग्राम ट्राईकोडर्मा को मिलाकर फसल में बुरकाव करें।

झुलसा रोग/मृदुरोमिल आसिता (डाउनी मिल्ड्यू) :-

नियन्त्रण :- इसके नियन्त्रण हेतु बोर्डाेमिश्रण जिसमें चूना 75 ग्राम + नीला थोथा 75 ग्राम/टंकी (15 लीटर पानी) या लाल दवा 15 ग्राम/टंकी (15 लीटर पानी) की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।

छाछिया रोग/चूर्णिल आसिता (पावडरी मिल्ड्यू) :-

नियन्त्रण :- लाल दवा 15 ग्राम/टंकी (15 लीटर पानी) चूना 75 ग्राम + नीला थोथा 75 ग्राम/टंकी (15 लीटर पानी) का छिड़काव करें।

पाले से बचाव :- जब लगाकर कई दिनों तक न्यूनतम तापमान 5° सैल्सियस से कम हो ओर उत्तरी हवाएँ चलें उस समय पाला पड़ने की संभावना अधिक रहती है। फसल को पाले से बचाने के लिए धुँआ करें या पाला पड़ने की संभावित अवधि में एक सिंचाई करके फसल को पाले के प्रकोप से बचाया जा सकता है। अथवा पाले से प्रभावित फसल पर गोमूत्र 1.5 लीटर + चूना दो ट्यूब प्रति टंकी (13.5 लीटर पानी) या ग्लुकोज-डी 10 ग्राम प्रति लीटर पानी के अनुसार फसल पर छिड़काव करें।

कटाई व मंढाई :- सरसों की फसल फरवरी-मार्च तक पक जाती है। सरसों के पत्ते झड़ने लगे और फलियाँ पीली पड़ने लगे तो फसल की कटाई कर लें अन्यथा कटाई में देरी होने से दाने खेत में झड़ने की आशंका रहती है। कटाई के बाद पौधों को छोटे-छोटे बंडलों में बांधकर खेत में छोड़ देते है। पौधे पूर्ण रूप से सूख जाने पर टेक्टर या बैलों से करके औसाई कर बीजों को अलग कर लिया जाता है। सरसों की गहाई थ्रेसर से भी कर सकते है।

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