सोयाबीन की जैविक खेती

सोयाबीन की जैविक खेती
सोयाबीन एक महत्वपूर्ण तिलहनी फसल है। राजस्थान में इसकी खेती मुख्यतः कोटा, बून्दी, बाँरा, झालावाड, चितोड़गढ़, बाँसवाड़ा, डूंगरपुर एवं प्रतापगढ़ जिलों में की जाती है। सोयाबीन के लिये चिकनी भारी, अच्छे जल निकास वाली उपजाऊ तथा उसर रहित मिट्टी उपयुक्त रहती है।
उन्नत किस्में
जे एस 335 (1994): 110 दिन की पकाव अवधि वाली इस किस्में 66 से 67 दिन बाद फूल आनें शुरू होते है। इसकी उपज करीब 18 से 20 क्विंटल प्रति हैक्टेयर होती है।
एनआरसी-7 (1997): 105 से 110 दिन में पकने वाली इस किस्म की औसत उपज 15 से 20 क्विंटल प्रति हैक्टेयर होती है। इसमें फलियों में चटखने की समस्या कम होती है।
प्रताप सोया-1 (2007): यह एक जल्दी पकने वाली (90 से 93 दिन) किस्म है। इसके पौधे की ऊँचाई 50 से 60 से.मी पुष्प का रंग गहरा गुलाबी तथा सौ दानों का वजन 11 से 13 ग्राम होता है। यह किस्म गर्डल बिटल से अत्यधिक प्रतिरोधी तथा सेमीलूपर व अन्य पत्ती खाने वाली कीटों से मध्यम प्रतिरोधी है। जीवाणु पत्ती धब्बा, जड़ गलन एवं तना गलन रोगों से मध्यम प्रतिरोधी है। इस किस्म की औसत उपज 25 से 30 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक है।
जे. एस. 93-05 (2002): यह किस्म 90 से 95 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म की फलीयाँ लगभग एक साथ पकती है एवं बीज पकने पर बिखरती नहीं है। इसके फूल बैगनी रंग के होते है। इसकी औसत उपज 20 से 25 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक होती है। यह किस्म मुख्य कीटों एवं बीमारियों से प्रतिरोधी पाई गई है।
एन.आर.सी.-37 (अहिल्या -4) (2001): पीले दाने वाली यह किस्म 96 से 102 दिन में एक जाती है, जिसकी औसत पैदावार 20 से 25 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है। इसकी मुख्य विशेषता है कि फलियां पकने के बाद चटखती नहीं है। यह किस्म सोयाबीन के प्रमुख कीटों एवं बीमारियों के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है।
प्रताप राज सोया-24( RKS-24) (2010): इस किस्म की उपज लगभग 26 क्विंटल प्रति हैक्टेयर होती हैं जो 95 से 100 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। इस किस्म के 100 दानों का भार लगभग 13 ग्राम होता है। इसमें 21 प्रतिशत तेल होता है एवं इसका तना मजबूत होने से पौधे आडे़ नहीं पड़ते है।
जे.एस. 95-60: यह जल्दी एवं एक साथ पकने वाली किस्म है। जिसका दाना पकने पर बिखरता नहीं है। इस किस्म का दाना मोटा एवं भूरे रंग को होता है तथा 18 से 20 क्विंटल प्रति हैक्टेयर औसत पैदावार होती है। यह किस्म गर्डल बीटल एवं ब्ल्यु बीटल से आंशिक प्रतिरोधी है तथा जड़ गलन एवं अन्य रोगों के प्रति प्रतिरोधी है।
खेत की तैयारी एवं भूमि उपचार
फसल की अच्छी वृद्धि के लिये खेत को भली-भांति तैयार करना चाहिये। गर्मी के मौसम में एक गहरी जुताई करनी चाहिये जिससे भूमि में उपस्थित कीड़े, रोग एवं खरपतवार के बीजों की संख्या में कमी होती है तथा भूमि की जल धारण क्षमता में वृद्धि होती है ।
सोयाबीन फसल अधिकांशतः वर्षा के जल पर ही निर्भर करती है।
बीज दर एवं बुवाई
एक हैक्टेयर क्षेत्र को बुवाई के लिए 80 किग्रा बीज पर्याप्त रहता है। सोयाबीन की बुवाई के लिए कतार से कतार की दूरी 30 से.मी. तथा पौधे की दूरी 5-7 से.मी. रखें। सोयाबीन की बुवाई सीड ड्रिल से करने के लिए सीड ड्रिल के टायनों को 30 से.मी पर स्थिर कर बुवाई करें अन्यथा पौधों की संख्या आवश्यकतानुसार नहीं रहेगी।
सोयाबीन की बुवाई मानसून आने के साथ ही करना चाहिये। बुवाई के समय भूमि में कम से कम 10 सेमी की गहराई तक पर्याप्त नमी होनी चाहिये। सोयाबीन की बुवाई के लिये जून के तीसरे सप्ताह से जुलाई का प्रथम सप्ताह उपयुक्त समय है। देरी से बुवाई करने पर पैदावार में कमी होती है। जहाँ सिंचाई का साधन उपलब्ध हो वहां वर्षा का इंतजार न करते हुए पलेवा देकर बुवाई करें।
जल भराव वाले क्षेत्र में श्रीरामशान्ताय जैविक कृषि अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केन्द्र कोटा द्वारा विकसित पद्धति अपनाई जा सकती है। जिसमें विशेष सीड ड्रिल से उठी हुई बेड पर आठ लाईन से बुवाई होती है।
बीजोपचार
बोने से पूर्व बीजों को अवश्य उपचारित करें। अच्छे अंकुरण और कीट रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए 100 ग्राम देशी गाय के ताजा गोबर को प्रति किलोग्राम बीज में मिलाकर बोनें से पहले उपचारित किया जाता है या गोमूत्र में दस गुणा पानी और चूना (खाने के जर्दा वाली चूना ट्यूब) मिलाकर घोल बनाये अर्थात् 1 ली गोमूत्र और 6 ग्राम चूना (खाने के जर्दा 1 चूना ट्यूब) को 10 लीटर पानी में मिलाकर बोनें से पहले उपचारित किया जाता है । उपचारित करने के लिए उपरोक्त घोल के छिटे दे । पिछली बार यदि इस बीज में जड़ गलन की समस्या पाई गई तो इस बार ट्राइकोडर्मा जैविक फफूँद नाशक से 6.0 ग्राम प्रति किलो बीज दर से बीजोपचार करें। सम्भव हो तो इसके पश्चात् बीजों को जीवाणु कल्चर से उपचारित करना आवश्यक है। इस हेतु 500 ग्राम राइजोबियम कल्चर प्रति हैक्टेयर की दर से मिलायें। कल्चर मिले घोल को बीजों में हल्के हाथ से मिलायें जिससे सारे बीजों पर एक समान परत चढ़ जाये। फिर छाया में सुखाकर बुवाई करनी चाहिये।
पोषक तत्व प्रबन्धन
सोयाबीन में 20-30 किग्रा नत्रजन एवं 40 किलो फाॅस्फोरस/हैक्टेयर की आवश्यकता होती है। बुवाई से 1 सप्ताह पहले या खेत की अंतिम जुताई के समय सरल कम्पोस्ट खाद 2.5 टन प्रति हैक्टेयर की दर से देवे तथा अतिम जुताई से पूर्व 250 किलो जिप्सम प्रति हैक्टेयर मिला सकते है।
बारीश के समय जीवाणु कल्चर – प्रत्येक बार खेत में बारिश के समय 30 किलोग्राम देशी गाय का ताजा गोबर (48 घण्टें तक का) घोल बनाकर एक बीघा (1620 वर्गमीटर) के लिए दे। घोल बनाने की व्यवस्था नहीं है तो छोटे-छोटे लड्डू बनाकर दे। ताकि गोबर का रस खेत में पहुँच जाये। (विदित है कि देशी गाय के गोबर में लाभदायक जीवाणुओ की पर्याप्त संख्या होती है। जो भूमि में उपलब्ध खनिज तत्वो को उपयोगी अवस्था में बदलने का कार्य करते है)
कई बार किसान ताजा गोबर और कच्चा गोबर को एक ही रूप में समझ लेते है इसलिए ध्यान रहे कि ताजा गोबर का अर्थ है 4-5 दिन पुराना और 70 प्रतिशत नमी युक्त गोबर ही ताजा गोबर है और कई दिनों तक खुलें में पड़ा बिल्कुल सुखा गोबर को कच्चा गोबर कहा जाता है।
नोट: – ये ताजा गोबर एक तरह से जीवाणु कल्चर है, न कि खाद। इसलिए खाद के लिए बुवाई से पूर्व प्रति बीघा (1620 वर्ग मीटर) में आधा टन सरल कम्पोस्ट खाद देना चाहिए। बुवाई के 1 माह बाद प्रति बीघा (1620 वर्ग मीटर) में 50 किलोग्राम सरल कम्पोस्ट खाद फैक देना चाहिए।
सरल कम्पोस्ट खाद बनाने हेतु एक टन या एक ट्रोली की रेवड़ी/गोबर ढेर हेतु 200 ली. पानी, 2 किलोग्राम गुड़ (काला या खराब भी चलेगा) 30ली. छाछ, 30 किग्रा. ताजा गोबर (देशी गाय का) का घोल बनाएं। रेवड़ी में 2 इंच चैड़े छेद कर गहराई तक डाले। शेष घोल को उपर फैलाएं और उपर कचरे से ढ़के। 2 माह बाद सरल कम्पोस्ट खाद तैयार हो जाएगा।
निराई-गुडाई एवं खरपतवार नियंत्रण
सोयाबीन की फसल में खरपतवारों को 30-45 दिन की अवस्था तक अवश्य नियंत्रित रखें। यदि परिस्थितियों सामान्य हो तो पहली निराई-गुडाई 20-25 दिन तथा दूसरी 40-45 दिन की फसल अवस्था पर करें। गुडाई उपरांत निकाले गये खरपतवारों को तीस दिन की अवस्था पर सोयाबीन की कतारों के मध्य पलवार के रूप में बिछा देने से खरपतवारों का नियंत्रण होता है। इस में ध्यान रहें कि कई बार खरपतवार के गुच्छे नीचे पुनः जड़े पकड़ लेते है।

सिंचाई
सोयाबीन की फसल को वैसे तो सामान्य वर्षा की स्थिति में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है किन्तु फूल आने एवं फलियों में दाना बनते समय पानी की कमी नहीं होने देना चाहिये। अतः उस समय वर्षा नहीं हो तो आवश्यकतानुसार 1-2 सिचाईयाँ करें।
पोषक तत्व प्रबन्धन (पर्णीय छिड़काव)
दूसरी बारिश के बाद जब सम्भव हो गोमूत्र में दस गुणा पानी और चूना (खाने के जर्दा वाली चूना ट्यूब) मिलाकर छिड़काव करे अर्थात् 10 लीटर गोमूत्र और 60 ग्राम चूना (खाने के जर्दा 10 चूना ट्यूब) को 100 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करे। एक बीघा (1620 वर्गमीटर) में 4 टंकी (60 लीटर पानी ) में 6 लीटर गोमूत्र और 50 ग्राम चूना (खाने के जर्दा वाली 6 चूना ट्यूब) मिलाकर छिड़काव करें।
नोट: – फसल में हल्का पीलापन दिखनें पर उपरोक्त उपचार तुरन्त करें ये अत्यन्त प्रभावी उपचार है। लेकिन यह भी ध्यान दें कि खेत में यदि पीलापन जड़गलन से हुआ हो तो ट्राइकोड्रर्मा युक्त खाद का छिड़काव करें।
चूना नहीं हो तो प्रति टंकी (15 लीटर) 250 ग्राम दुब घास का ज्यूस मिलाए। दुब घास नहीं हो तो 1 किलोग्राम सोयाबीन को 24 घन्टें पानी में भिगों कर, अच्छे से फूल जाने पर बारीक पीस ले। इसी में 250 ग्राम गुड़ मिला दे। 5 लीटर पानी मिलाकर 3 दिनों तक कपड़े से ढक कर रखे। तीन दिन बाद घोल को छानकर, आधा लीटर प्रति टंकी (15 ली.पानी) की दर से छिड़काव करें। (ये सोया घोल 7 दिन तक ही स्टोर होता है)
पंचगव्य उपलब्ध हो तो 1 टंकी (15 ली.) में 450 एम.एल. पंचगव्य मिला कर छिड़काव 45-65 दिन की फसल पर करे। पंचगव्य उपलब्ध नहीं हो तो अभी बना लीजिए। पंचगव्य/गोमूत्र या सोयाबीन, चूना आदि नही हो तो 450 ग्राम सहजन ज्यूस 1 टंकी (15 ली.पानी) मिला कर छिड़काव करे।

बुवाई के 70 दिन बाद या सोयाबीन की फलियां में दाने की दूधिया अवस्था में सप्तधान्यंकुर ज्यूस बनाकर छिड़काव करें। इसके लिए तिल (काले या सफेद कोई भी), मूंग, उड़द, लोबिया, मोठ/मूठी, मसूर, गैहूँ, चने प्रत्येक 100-100 ग्राम ले। सबसे पहले दिन एक कटौरी में तिल भिगो दे, दूसरे दिन शेष सभी अनाज अगले दिन अलग अलग कटोरीयों में भिगो दे। 24 घण्टें में अंकुरण के बाद सभी को एक कपड़े में खाली कर के पोटली बनाकर के टांग दे। हल्की की सी फुटान के बाद सभी अंकुरित अनाज की चटनी बना दे। इस के साथ 10 लीटर गौमूत्र (उपलब्ध हो तो) मिला लें और 200 लीटर पानी में मिलाकर फसल पर छिड़काव करें।

पौध संरक्षण
सोयाबीन की फसल में मुख्य रूप से तना मक्खी, सफेद मक्खी, गर्डल बीटल, हरी अर्थ कुण्डक (सेमीलूपर), तम्बाकू इल्ली एवं फली छेदक आदि प्रमुख है। इसी प्रकार सोयाबीन में मुख्यतया विषाणु रोग (पीलाशिरा मौजेक), जीवाणु रोग, तना सडन रोग, पत्ती धब्बा रोग, माइकोप्लाज्मा जनित रोग मुख्य हैं।
इनसे बचने के लिये निम्न उपाय करें।
खेत की सफाई करना फसलों की कटाई हो जाने के बाद प्रायः उनके अवशेषों को खेत में छोड़ दिया जाता है। ये अवषेष अपने में पल रहे विभिन्न कीटों के जनन, शरण तथा कीटों की शीत निद्रा व्यतीत करने के स्थानों के रूप में काम में आते है। इसलिए इनको खेतों से हटाया जाना आवश्यक है।
ग्रीष्मकालीन जुताई करे: खेत की गहरी जुताई करने से कीटों की भूमि में उपस्थित विभिन्न अवस्थाएं (अण्डे, सूंडी व शंकु आदि) बाह्य वातावरण में आ जाती है। यहा उन्हें प्राकृतिक शत्रु खा जाते है या प्रतिकुल मौसम के कारण मर जाते हैं।
फसल चक्र अपनायें।
गर्डल बीटल का प्रकोप अगेती फसल में अधिक होता है, इसलिए समय पर (जुलाई के प्रथम सप्ताह में) बुवाई करें।
10-15 प्रतिशत बीजदर ज्यादा रखें जिससे रोगग्रस्त एवं कीट ग्रस्त पौधों को निकालने के बाद भी उचित पौधे खेत में बने रहे।
पक्षी आश्रय के लिये ‘T’ आकार के 40 से 50 अड्डे/लकड़ी प्रति हैक्टेयर की दर से लगाना चाहिए।
खेतो में प्रकाश पाश (लाईट ट्रेप) लगाये। इसके लिए तेल के टिन को चारों तरफ से खुला करके कट करें। स्टेण्ड़ पर रखें और बल्व लगायें और पानी भरे। रात को 10 बजे लाईट बन्द कर देवें।
कृषि एवं पर्यावरण सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण वानस्पतिक कीटनाशी का प्रयोग किया जा सकता है। अधिकतर वानस्पति आधारित कीटनाशकों को किसान स्वयं ही तैयार कर सकते है। इनमें नीम आधारित कीटनाशी जैसे निम्बौली का सत, नीम का तेल सर्वाधिक प्रचलित है। आक, नीम, लहसुन, गेन्दा, तुलसी आदि के विभिन्न भागों से बने उत्पाद प्रयोग में लाए जाते है। इसके लिए दस वनस्पतियों से निर्मित घोल की विस्तृत जानकारी (वनस्पति रस) निम्न प्रकार से है
निर्माण सामग्री –
1. 200 लीटर पानी 2. 2 किलोग्राम गाय का गोबर
3. 10 लीटर गोमूत्र 4. 2 किलोग्राम करंज के पत्ते
5. 2 किलोग्राम सीताफल के पत्ते 6. 2 किलोग्राम धतूरा के पत्ते
7. 2 किलोग्राम तुलसी के पत्ते 8. 2 किलोग्राम पपीता के पत्ते
9. 2 किलोग्राम गेन्दा के पत्ते 10. 5 किलोग्राम नीम के पत्ते
11. 5 किलोग्राम बेल के पत्ते 12. 2 किलोग्राम कनेर की पत्ती
13. 500 ग्राम तम्बाकू पीस कर। 14.काटकर 500 ग्राम लहसुन चटनी
15. 500 ग्राम पिसी हल्दी 16. 500 ग्राम तीखी हरी मिर्च
17. 200 ग्राम अदरक या सौंठ

बनाने की विधि : –
सर्वप्रथम एक प्लास्टिक के ड्रम में 200 ली. पानी डाले फिर इसमें 2 किलोग्राम गाय का गोबर और 10 ली. गोमूत्र मिला दें। अब इसमें नीम, करंज, सीताफल, धतूरा, बेल, तुलसी, आम, पपीता, करंज, गेन्दा की पत्ती की चटनी डालें और डण्डें से चलाएं फिर दूसरे दिन तम्बाकू, मिर्च, लहसुन, सौंठ, हल्दी डाले फिर डण्डें से चलाकर जालीकर कपडे़ से बन्द कर दें और 30 दिन छाया में रखा रहने दें, परन्तु प्रतिदिन सुबह शाम डण्डें से हिलाते जरूर रहें। यह घोल 1 माह में तैयार होगा। प्रति टंकी (15 ली. पानी) में 1.5 ली. घोल प्रभावी रहेगा। यह तीन – चार दिन भण्डारित किया जा सकता है। इस के अलावा अभी से ही नीम निम्बोंली, करंज बीज, राख, गौमूत्र आदि इक्कठा करें। जो आगे जा कर उपयोगी साबित होगी।
30 दिन की फसल अवस्था पर अण्ड परजीवी ट्राइकोग्रामा के अण्डों को 10 लाख/हैक्टेयर की दर से फसल पर छोड़ना चाहिए। 30 से 45 दिन की फसल अवस्था तक गर्डल बीटल से ग्रसित पौधे के भागों ( डण्ठलो) को तोड़कर नष्ट कर देना चाहिए।
विषाणु रोग के वाहक रसचूसक कीट नियंत्रण हेतु नीम तेल 4 मि.ली. प्रति लीटर पानी का छिड़काव करें। हरा तेला एवं सफेद मक्की नियंत्रण हेतु पिला चिपचिप पाश 10-12 प्रति हैक्टेयर खेत  में खड़े करें।
खेत की मेडों पर फूल वाले पौधे लगाने चाहिए जिससे परजीवी कीटों को पराग मिल जाता है तथा उनके संरक्षण में मदद मिलती है जैसे गेन्दा, गेलार्डिया, गुलदाऊदी।
सोयाबीन में जुलाई-सितम्बर माह में लगने वाले प्रमुख कीट एवं उनके नियन्त्रण
क्र.स. कीट का नाम नियन्त्रण हेतु उपयोगी उत्पाद
1 .सफेद मक्खी (White Fly) नीम तेल 10 ml+ग्वारपाठा ज्यूस 20ml प्रति लीटर पानी या दशपती घोल 100ml प्रति लीटर पानी
2 .जैसिड (Jassid) 1 किलोग्राम तम्बाकू को 10 लीटर गौमूत्र में उबालें एक उबाल आते ही आँच से नीचे उतारें 100 लीटर पानी में मिलाकर फसल में छिड़काव करें।
3 .गर्डल बीटल/चक्र भृग (Girdle Beetle) दशपती घोल 100ml प्रति लीटर पानी
4 .तम्बाकू इल्ली (Tobacco Caterpillar). नीम तेल 4ml+ग्वारपाठा ज्यूस 20ml प्रति लीटर पानी या नीम निम्बोंली अर्क 100ml+गौमूत्र 100ml प्रति लीटर पानी या दशपती घोल 100ml प्रति लीटर पानी
विशेष :- उपरोक्त प्रत्येक कीट नियन्त्रक समग्र रूप से प्रभावी है अर्थात तेल सभी कीड़ों को नियन्त्रित करता है, तो अन्य में से प्रत्येक भी सभी कीड़ों को नियन्त्रित करता है।
हेलीकोवर्पा व तम्बाकू की लट की निगरानी व नियंत्रण हेतु फेरोमेन ट्रैप लगाये (प्रत्येक कीट के लिये अलग-अलग) 6-10 फेरोमेन ट्रेप प्रति हैक्टेयर का प्रयोग करें।
हेलीकोवर्पा व तम्बाकू की लट के नियंत्रण के लिये एचएएनपीवी या एसएलएनपीवी 250-450 एलई प्रति हैक्टेयर का क्रमशः प्रयोग करें या सुक्ष्मजीवी कीटनाशक बेसीलस थूरिन्जेन्सिस (बी.टी.) का 1.0 लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करें या 1 किलोग्राम तम्बाकू को 10 लीटर गौमूत्र में उबालें एक उबाल आते ही आँच से नीचे उतारें 100 लीटर पानी में मिलाकर फसल में छिड़काव करें।

सोयाबीन में जुलाई-सितम्बर माह में लगने वाले प्रमुख रोग एवं उनके नियन्त्रण
क्र.स. रोग का नाम नियन्त्रण हेतु उपयोगी उत्पाद
1 .जड़ सड़न (Root Rot) 1 kg ट्राइकोड्रर्मा+100kg कम्पोस्ट खाद प्रति बीघा
2 .तना सड़न (Stem Rot) 1kg ट्राइकोड्रर्मा+100kg प्रति बीघा कम्पोस्ट खाद
3 .पीलाशिरा मौजेक
(Yellow Mosaic Virus) जीवाणु पत्ती धब्बा रोग (Bacterial Leaf Blight) हर्बल मिक्स स्प्रे 100ml प्रति लीटर या बोर्डो मिश्रण 10ml प्रति लीटर या स्यूडोमोनास 5 ग्राम+ हल्दी 3 ग्राम प्रति लीटर पानी
पत्ती झुलसा रोग हेतु खट्टी छाछ (20-30 दिन पुरानी) का बुवाई के 30 एवं 45 दिन बाद छिड़काव करें।
विषाणु रोग के वाहक रस सूचक कीट नियंत्रण उपरोक्त विधि से समय समय पर करते रहे।
फसल कटाई:-उपयुक्त समय पर कटाई करें भण्डारण से पूर्व बीजों में नमी की मात्रा 10-15 प्रतिशत से अधिक नही होनी चाहियें।

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