तकनीकी सलाह एवं सूचना

गोयाल ग्रामीण विकास संस्थान कोटा द्वारा स्थापित श्रीरामशान्ताय जैविक कृषि अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केन्द्र के द्वारा तकनीकी सलाह एवं सूचना

रबी ऋतु में सभी फसलों में बढ़वार, फसल के अच्छे स्वास्थ्य, फल एवं फूलों के अधिक उत्पादन हेतु किए जाने वाले कार्यों का विवरण  निम्नलिखित हैं –
यदि पहली बार जैविक कृषि हेतु प्रयास कर रहे हैं और रबी की फसल मे बम्पर उत्पादन और भूमि की उर्वरता को बढ़ाना है तो इस बार जिस खेत में खरीफ ऋतु मे हरी खाद हेतु सण (सनई) या ढैचे की फसल थी, उसका का चयन करें।
प्रत्येक सिंचाई में 30 किलोग्राम प्रति बीघा (1620 वर्ग मीटर/13 बिस्वा) देशी गाय का ताजा गोबर (48 घण्टें तक का) घोल बनाकर दे। घोल बनाने की व्यवस्था नहीं है तो छोटे-छोटे लड्डू बनाकर दे। ताकि गोबर का रस खेत में पहुँच जाये। (विदित है कि देशी गाय के गोबर में लाभदायक जीवाणुओ की प्रर्याप्त संख्या होती है। जो भूमि में उपलब्ध खनिज तत्वों को उपयोगी अवस्था में बदलने का कार्य करते है।)
नोट: – ये ताजा गोबर एक तरह से जीवाणु कल्चर है, न कि खाद। इसलिए खाद के लिए बुवाई से पूर्व प्रति बीघा (1620 वर्ग मीटर/13 बिस्वा) में 3 टन कम्पोस्ट खाद देना चाहिए। बुवाई के 1 माह बाद प्रति बीघा (1620 वर्ग मीटर/13 बिस्वा) में 2 क्विंटल खाद/कम्पोस्ट फैक देना चाहिए।
कम्पोस्ट खाद बनाने हेतु एक टन या एक ट्रोली की रेवड़ी/गोबर ढेर हेतु 200 लीटर पानी, 2 किलोग्राम गुड़ (काला या खराब भी चलेगा) 30 लीटर छाछ, 30 किलोग्राम ताजा गोबर (देशी गाय का) का घोल बनाएं। रेवड़ी में 2 इंच चैड़े छेद कर गहराई तक डाले। शेष घोल को ऊपर फैलाएं और ऊपर कचरे से ढ़के। 2 माह बाद खाद तैयार हो जाएगा।
वर्तमान में ज्यादा सर्दी व पाले की वजह से अधिकतर फसलों को नुकसान होने की संभावना है। लेकिन इस समय गैहूँ की फसल को कम तापमान की जरूरत होती है। इसलिए इस मौसम से गैहूँ को फायदा पहुंचेगा। लेकिन अत्यधिक सर्दी और ठंडक की वजह से गैहूँ की नीचे की पत्तियाँ पीली हो रही है, जिससे किसान हर बार की भाँति चिंतित है, इसके मूल कारण की जानकारी के अभाव में कई तरह के उपचार के बावजूद भी सकारात्मक परिणाम नहीं मिलते है।
तकनीकी अध्ययन अनुसार विदित है कि अत्यधिक ठंडक की वजह से जीवाणवीय/माइक्रोबियल गतिविधि कम हो जाती है, जिसके कारण से नाइट्रोजन का उठाव (Uptake) कम होता है, पौधे नाइट्रोजन को उपलब्ध रूप में नाइट्रेट में बदल देता है। नाइट्रोजन अत्यधिक गतिशील होने के कारण निचली पत्तियों से ऊपरी पत्तियों की ओर चला जाता है, इसलिए निचली पत्तियाँ पीली हो जाती हैं। यह सत्य है की यह कोई बीमारी नहीं है, ये पौधे समय के साथ ठीक हो जाते है इसके लिए 1 टंकी/15 लीटर पानी में 1.5 लीटर गौमूत्र व चूने की दो ट्यूब (जर्दे में उपयोग होने वाली) घोलकर छिड़काव  करें। हमारे केंद्र के आग्रह पर ये प्रयोग कई किसानों ने किया है, अभिनव परिणाम प्राप्त किए है।
गैहूँ और स्ट्राबेरी के अलावा (क्योंकि गैहूँ और स्ट्राबेरी की फसल में अत्यधिक ठंड लाभदायक ही होगी) दलहन (मसूर), आलू, पपीता और टमाटर को पाला से नुकसान होने की बहुत ज्यादा संभावना है। वर्तमान में वातावरण आलू और टमाटर की फसल के लिए बहुत घातक है, इस समय पछेती झुलसा रोग (ब्लाइट) के लगने से पूरी फसल के गल जाने की संभावना रहती है। झुलसा के ईलाज के लिए – अगेती व पछेती झुलसा के ईलाज के लिए 15 लीटर की टंकी में 80 ग्राम सकते हल्दी व 100 ग्राम स्यूडोमोनासा का घोल बनाकर स्प्रे कर सकते है व इसके अलावा 75 ग्राम चूना + 75 ग्राम नीला थोथा प्रति टंकी (15 लीटर) का घोल बनाकर स्प्रे कर सकते है। वहीं चना, मसूर फसल पर भी अत्यधिक ठंडक से नुकसान हो सकता। इसके साथ ही अत्यधिक ठंडक से गैहूँ एवं अन्य फसलों को बचाने के लिए हल्की सिंचाई करनी चाहिए, यथा संभव खेतों के किनारे (मेड़) आदि पर धुआं करें। इससे पाला का असर काफी कम पड़ेगा। यदि कोई नकदी फसल में पाले का प्रभाव पड़ा है तो एक टंकी/15 लीटर पानी में 100 ग्राम ग्लूकोज घोल के छिड़काव करे। इससे फसल को नुकसान होने से बचाया जा सकता है। साथ ही 15 ली. पानी में 1.5 लीटर गौमूत्र + 2 चूना ट्यूब मिलाकर भी छिड़के अर्थात् 10 लीटर गौमूत्र और 60 ग्राम चूना (खाने के जर्दा वाली 10 चूना ट्यूब)  को 100 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करे। एक बीघा (1620 वर्गमीटर/13 बिस्वा) मे 4 टंकी (60 लीटर पानी) में 6 लीटर गौमूत्र और  50 ग्राम चूना (खाने के जर्दा वाली 6 चूना ट्यूब) मिलाकर छिड़काव करें।
1. चूना नहीं हो तो प्रति टंकी (15 लीटर पानी में) 250 ग्राम दुब घास का ज्यूस मिलाए। दुब घास नहीं हो तो 1 किलोग्राम सोयाबीन को 24 घन्टें पानी में भिगों कर, अच्छे से फूल जाने पर बारीक पीस ले। इसी में 250 ग्राम गुड़ मिला दे। 5 लीटर पानी मिलाकर 3 दिनों तक कपड़े से ढक कर रखे। तीन दिन बाद घोल को छानकर, आधा लीटर प्रति टंकी (15 लीटर पानी) की दर से छिड़काव करें। (ये सोया घोल 7 दिन तक ही स्टोर होता है)
2. पंचगव्य उपलब्ध हो तो 1 टंकी (15 लीटर) में 450 उस पंचगव्य मिला कर छिड़काव 45-65 दिन की फसल पर करे। पंचगव्य उपलब्ध नहीं हो तो अभी बना लीजिए।
3. पंचगव्य/गौमूत्र या सोयाबीन, चूना आदि नही हो तो 450 ग्राम सहजन की हरी पत्तियों का ज्यूस (स्वरस) 1 टंकी (15 लीटर पानी) मिला कर छिड़काव करे।
4. बुवाई के 70 दिन बाद या अनाज में दाने की दूधिया अवस्था में सप्तधान्यंकुर ज्यूस बनाकर छिड़काव करें। इसके लिए तिल (काले या सफेद कोई भी), मूंग, उड़द, लोबिया, मोठ/मूठी, मसूर, गैहूँ, चने प्रत्येक 100-100 ग्राम ले। सबसे पहले दिन एक कटौरी में तिल भिगो दे, दूसरे दिन शेष सभी अनाज अगले दिन अलग अलग कटोरीयों में भिगो दे। 24 घण्टें में अंकुरण के बाद सभी को एक कपड़े में खाली कर के पोटली बनाकर के टांग दे। हल्की की सी फुटान के बाद सभी अंकुरित अनाज की चटनी बना दे। इस के साथ 10 लीटर गौमूत्र (उपलब्ध हो तो) मिला लें और 200 लीटर पानी में मिलाकर फसल पर छिड़काव करें।
नोट: – फसल में हल्का पीलापन दिखनें पर और अन्य पोषक तत्त्व की कमी पूर्ति के लिए उपरोक्त उपचार तुरन्त करें ये अत्यन्त प्रभावी उपचार है। लेकिन यह भी ध्यान दें कि खेत में यदि पीलापन जड़गलन से हुआ हो तो 1 बीघा (1620 वर्गमीटर) में 1 किलोग्राम ट्राइकोड्रर्मा या 1 एकड़ में 3 किलोग्राम ट्राइकोड्रर्मा युक्त खाद का छिड़काव करें। इसके लिए ट्राइकोड्रमा पहले से मिक्स करके 100 किलोग्राम खाद में मिला देवें। यह समस्या चना, मसूर, लहसुन में अधिक आती है। इसके लिए प्रभावी उपाय है।
रबी की समस्त फसलों में 20 दिन की फसल पर हानिकारक कीटों का घातक प्रभाव शुरू हो जाता है। इस के लिए 20 दिन की फसल पर कीट नियन्त्रण हेतु अभी से ही वनस्पत्ति रस बनाएं, इसका विवरण निम्नलिखित है जो कि एक माह बाद उपयोग हेतु तैयार मिलेगा:-
वनस्पतियों से निर्मित घोल की विस्तृत जानकारी
निर्माण सामग्री –
200 लीटर पानी 10 किलोग्राम गाय का गोबर
10 लीटर गौमूत्र 2 किलोग्राम करंज के पत्ते
2 किलोग्राम सीताफल के पत्ते        2 किलोग्राम धतूरा के पत्ते
2 किलोग्राम तुलसी के पत्ते 2 किलोग्राम पपीता के पत्ते
2 किलोग्राम गेन्दा के पत्ते 5 किलोग्राम नीम के पत्ते
5 किलोग्राम बेल के पत्ते 2 किलोग्राम कनेर की पत्ती
500 ग्राम तम्बाकू पीस कर या काटकर 500 ग्राम लहसुन
500 ग्राम पिसी हल्दी 500 ग्राम तीखी हरी मिर्च
200 ग्राम अदरक या सौंठ
बनाने की विधि – सर्वप्रथम एक प्लास्टिक के ड्रम में 200 लीटर पानी डाले फिर इसमें 10 किलोग्राम गाय का गोबर और 10 लीटर गौमूत्र मिला दें। अब इसमें नीम, करंज, सीताफल, धतूरा, बेल, तुलसी, आम, पपीता, कंजरे, गेन्दा की पत्ती की चटनी डालें और घोल को डण्डें से हिलाऐ फिर दूसरे दिन तम्बाकू, मिर्च, लहसुन, सौंठ, हल्दी डाले फिर पूरे घोल को डण्डें से हिलाकर जालीदार कपडे़ से ढ़क दें और 10 दिन छाया में रखा रहने दें, परन्तु प्रतिदिन सुबह शाम डण्डें से हिलाते जरूर रहें।
भण्डारण एवं अन्य सावधानियाँ – इसको 6 माह तक प्रयोग कर सकते है। इस घोल को छाया में रखें। बनाते समय इसकों सुबह शाम हिलाना न भूले। प्रति एकड़ के लिए 200 लीटर पानी में 10 लीटर उपरोक्त घोल मिलाकर छिड़काव करें। यह घोल कीट नियन्त्रण के साथ रोग नियन्त्रक भी है। और इसकी बदबू से सुअर/नीलगाय भी खेत में प्रवेश नही करतें है।
उपरोक्त घोल नही बना सकते है या बना हुआ नहीं हो तो नीम तेल इस के अलावा अभी से ही नीम तेल, नीम निम्बोंली, करंज बीज, राख, गौमूत्र आदि इक्कठा जो आगे जा कर उपयोगी साबित होगी।
नीम की निम्बोंली का अर्क – उत्पाद – नीम की निम्बोंली – 20 किलोग्राम
   गौमूत्र     – 20 लीटर
   पानी    – 180 लीटर
विधि – निम्बोंली व गौमूत्र को 200 लीटर के ड्रम में भरकर उसमें 180 लीटर पानी मिलाकर 15-20 दिन तक सड़ा-गलाकर रखने के लिए छोड़ दे व सुबह-शाम डण्डे से हिलाते रहे। व उसके 1 महिने बाद इस घोल को 1.5 लीटर/टंकी (15 लीटर पानी में) के हिसाब से उपयोग करें।
करंज तेल या नीम तेल – आधा से 1 लीटर प्रति 100 लीटर पानी के हिसाब से उपयोग करें।
राख – 100 किलोग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से उपयोग करें।
गौमूत्र – 30 लीटर प्रति बीघा के हिसाब से पानी के साथ चलायें।
नीम पत्ति घोल – उत्पाद – गौमूत्र – 10 लीटर
  ताजा गोबर – 2 किलोग्राम
  नीम की पत्ति – 10 किलोग्राम
विधि – गौमूत्र व ताजा गोबर व नीम की पत्तियों को 200 लीटर के ड्रम में डालकर पानी से भर दें व एक महिने तक सुबह-शाम हिलाते रहे व 1 महिने बाद इस घोल को 1.5 लीटर प्रति टंकी (15 लीटर) के हिसाब से उपयोग में ले।
एक आग्रह:- इस बार आपकी फसल से अगली फसल हेतु देशी/उन्नत बीज जरूर तैयार करे, इसके लिए एक प्लाट चिन्हित करे, जिसके पौधो से बीज लिया जाएगा। उसमें से कीट-रोग ग्रसित पौधों हटाए, हल्की बढ़वार वाला पौधा हटाए अर्थात् केवल स्वस्थ पौधों का चयन करना है।
नोट:- तकनीकी प्रशिक्षण के लिए हर माह की 15 तारीख को प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित होता है उसमें आप पंजीकरण करा सकते है – पंजीकरण के लिए नं. 8875995439
अधिक जानकारी एवं सहयोग के लिए आप हमारे यहाँ पधारे।

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