जायद अर्थात गेहूँ/सरसों/चने की कटाई के बाद हरी खाद
लेखक – मुरलीधर नागर, रिसर्च स्कोलर, मोबाईल नं. – 9672388626
अभी रबी की ऋतु मे अधिकतम फसलों की कटाई हो चुकी है और अभी दो महीने का जो यह समय है। इस समय अधिकतर खेत खाली रहेंगे। विशेषतः इस समय किसान हरी खाद (ढैंचा, मूंग, उड़द) वाली फसलों की बुवाई कर सकते हैं। जिस किसान के पास पानी की व्यवस्था है और खेत के चारों तरफ आवारा पशुओ से बचाव व्यवस्था है। वह किसान अभी हरी खाद की फसलें लगा सकते हैं और आगामी फसलों के लिए खाद की व्यवस्था आसानी से कर सकते हैं और रासायनिक उर्वरकों को कम कर सकते हैं।
बुवाई की तैयारी और बीज की मात्रा:-
हरी खाद के लिए बीज छिड़कर, हल्की जुताई करके सिंचाई कर दी जाती है। हरी खाद के लिए प्रत्येक फसलानुसार बीज मात्रा निम्नानुसार है।
क्र.स. फसल का नाम — बीज की मात्रा/एकड़ बीज की मात्रा/बीघा
1 ढैंचा 50 किलोग्राम/एकड़ 20 किलोग्राम/बीघा
2 सनई 40 किलोग्राम/एकड़ 13 -14 किलोग्राम/बीघा
3 मूंग 12-15 किलोग्राम/एकड़ 5 -6 किलोग्राम/बीघा
4 उड़द 12-15 किलोग्राम/एकड़ 5-6 किलोग्राम/बीघा
विशेषः- उपरोक्त दलहनी फसलों के साथ सम्भव हो तो तिल (250 ग्राम/बीघा) काचरी (250 ग्राम/बीघा) और बाजरा (250 ग्राम/बीघा) मक्का (250 ग्राम/बीघा) सांवा (50 ग्राम/बीघा) का उपयोग अवश्य करें
सिंचाईः-
ग्रीष्मकालीन फसल के लिए पलेवा सहित 2-3 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है या जरूरत पडने पर 10 से 15 दिन के अंतराल में हल्की सिंचाई कर दें। खरीफ में वर्षा की मात्रा के अनुसार 1-2 सिंचाई पर्याप्त है।
हरी खाद को मिट्टी में मिलाने का समयः-
हरी खाद के लिए प्रयुक्त फसल में फूल आने के के पूर्व वानस्पतिक वृद्धि काल (40-50 दिन) में मिट्टी में पलट दिया जाता है। हरी खाद की फसल को पलटने के लिये पुरानी पद्धति से खड़ी फसल में पाटा चलाकर फिर मिट्टी पलटने वाले हल से फसल को मिट्टी में दबा दिया जाता है। परन्तु अब रोटावेटर की उपलब्धता व प्रयोग से यह कार्य अधिक बेहतर तरीके से किया जा सकता है क्योंकि इसमें फसल को सीधे छोटे छोटे टुकड़ों में काटकर मिट्टी में मिलाने की प्रकिया एक बार में ही पूर्ण कर दी जाती है जिससे समय की बचत के साथ हरे पदार्थ का सडाव जल्दी होता है ।
हरी खाद के लाभ:-
हरी खाद के उगाने से मदृा में सूक्ष्मजीवों की संख्या में वृद्धि होती है, तथा जैविक कार्बन/जीवांश में बढोतरी, मिट्टी भुरभुरी/संरचना में सुधार, हवा एवं जल संचार में वृद्धि, जलधारण क्षमता बढती है और साथ ही मिट्टी की उर्वरता शक्ति एवं उत्पादन क्षमता भी बढती है। मृदा में हरी खाद वाली फसल लगाने से पोषक तत्त्वो की कमी नही आती है पोषक तत्त्वों की उपलब्धता बढ जाती है एवं जैविक पदाथों की उपलब्धता में बढोतरी होती है। मृदा की क्षारियता में भी परिवर्तन आता है। प्रायः ऐसा देखा गया है कि हरी खाद से फसलों का उत्पादन बढ़ता है।
विशेष प्रयोगः- ताजा गोबर का घोल 30 किलोग्राम बीघा या 200 किलोग्राम प्रति हेक्टर लड्डू बनाकर पानी देते समय आगे आगे फेंक दें, ताकि जीवाणुवीय गतिविधि बढ़ सके। गोबर की सुगन्ध आते ही केंचुए भी बढ़ जाते हैं।