तरल-खाद

जैविक खेती में अमृत पानी की विधि एवं प्रयोग :-


गाय के 10 किग्रा. ताजे गोबर में गाय का दूध 250 ग्राम एवं देशी घी 250 ग्राम को अच्छी तरह फेंटकर इसमें 500 ग्राम शहद मिलाकर फेंटे।
इस मिश्रण में से आध किग्रा. मिश्रण लेकर वट के पेड़ के नीचे की आधा किग्रा. मिट्टी अच्छी तरह मिला लें।
अब इस 1 किग्रा. मिश्रण को पतला कर बोये जाने वाले बीज पर छिड़ककर अच्छी तरह उपचारित/संस्कारित करें जिससे बीज पर मिश्रण की हल्की सी परत चढ़ जाये। इसे छाया में सुखाकर बुवाई करें।
अमृत पानी का छिड़काव बुवाई से पूर्व खेतों में किया जा सकता है।
उक्त प्रकार से तैयार 10 किग्रा. मिश्रण को 200 लीटर पानी में घोलकर 1 एकड़ खेत में छिड़काव करें।

जैविक खेती में पंचगव्य निर्माण की विधि एवं प्रयोग :-

पंचगव्य –  पंचगव्य एक जैविक उत्पाद है जो पौधों की बढ़वार तथा पौधों को रोगों के प्रति लड़ने की शक्ति प्रदान करता है। पंचगव्य देशी गाय के 5 उत्पाद जैसे – गाय का गोबर, गौमूत्र, दूध, दही, घी के अलावा केला, कच्चा नारियल, शहद तथा पानी को मिलाकर बनाया जाता है।
यह मिट्टी एवं फसलों के लिए लाभदायक होता है

  • मिश्रण – 1
    गाय का गोबर 7 किलों
    गाय का घी 1 किलों
    दोनों को एक टंकी में मिलाकर 3 दिन तक सुबह एवं षाम को हिलाये
  • मिश्रण – 2
    गौमूत्र 10 लीटर
    पानी 10 लीटर
    3 दिन बाद मिश्रण-1 में मिश्रण-2 मिलाकर 15 दिन तक सुबह एवं षाम हिलाये
  • मिश्रण – 3
    गाय का दूध 3 लीटर
    गाय का दही 2 लीटर
    कच्चा नारियल पानी 3 लीटर
    गुड़ 3 किलों
    पक्का हुआ केला 12 नग

15 दिन बाद पहले से तैयार (मिश्रण-1 एवं मिश्रण-2) के मिश्रण-3 को मिलाये तथा सभी मिश्रणों से तैयार घोल की टंकी को खुले में छाया में रख दें तथा इस सम्पूर्ण घोल को रोज सुबह एवं शाम हिलाते रहे। कुल 30 दिन बाद पंचगव्य का सान्द्र घोल तैयार हो जाता है। ध्यान रहे पंचगव्य में भैंस का कोई भी उत्पाद काम में नहीं लें जहाँ तक संभव हो विदेशी नस्ल की गाय के बजाय देशी गाय का उत्पाद ही काम में लें
इस पंचगव्य के सान्द्र घोल को 30 दिन में तैयार होने के बाद जाली या पाॅलीथीन से ढ़क दें।

सहजन की पत्तियों का अर्क (पौध बढ़वार टाॅनिक) :-

निर्माण सामग्री: – 2 किग्रा सहजन की पत्तियाँ, 5 लीटर गौमूत्र, 5 लीटर पानी

बनाने की विधि: – 2 किग्रा. सहजन की पत्तियों को बारीक पीसकर 5 लीटर गौमूत्र और 5 लीटर पानी में मिलाकर गला दें। 5 दिन बाद इससे पानी को छान लें।

उपयोग: – इस पानी के 500 मिलीलीटर को एक टंकी (15 लीटर पानी) में मिलाकर फसल पर छिड़काव करें। यह बाजार में मिलने वाले किसी भी टाॅनिक से अच्छे परिणाम देता है।

जैविक खेती में मटका खाद की विधि एवं प्रयोग :-

देशी गाय का 15 कि.ग्रा. ताजा गोबर, व 15 लीटर गोमूत्र तथा 15 लीटर पानी मिट्टी के घडे़ में घोल लें। उसमें 250 ग्राम गुड़ भी मिला दें।
इस घोल को मिट्टी के बर्तन में ऊपर से कपड़ा या टाट व मिट्टी से पैक कर दें।
7 से 8 दिन बाद इस घोल में 200 लीटर पानी मिलाकर 1 एकड़ खेत में समान रूप से डिड़क दें।
यह छिड़काव बुवाई के 15 दिन बाद करें।
पुनः 7 दिन बाद दूसरा छिड़काव करें।
सामान्य फसल में 3 से 4 बार और लँम्बी अवधि की फसल में 8-9 बार छिड़काव करें।

लाभ – वानस्पतिक वृद्धि हेतु अति उत्तम प्रयोग है।

उपलों से बना ह्यूमिक एसिड (पौध बढ़वार टाॅनिक) :-

उपलों से बना टाॅनिक पौधों के लिए एक अच्छा पौध-बढ़वार टाॅनिक (ग्रोथ प्रमोटर) है। इसके उपयोग से हृयूमिक एसिड के समान ही परिणाम प्राप्त होते है। इसका प्रयोग छोटे पौध की बढ़वार दर में वृद्धि के लिए किया जाता है।

निर्माण सामग्री-

  • 25-30 किग्रा. उपले/कण्डे/गोसे/छाने
  • 50 लीटर क्षमता का पात्र

बनाने की विधि-

एक 50 लीटर क्षमता के ड्रम में दो साल पुराने उपले/कण्डे या गोसे की तरह लगा कर पूरा भर दें। फिर उसमें ऊपर तक पानी भर दें। अब इसे 7 दिन रखा रहने दें। प्रतिदिन एक दो बार ड्रम को हिला दें ताकि पानी में हलचल पैदा हो जायें। (डंडा डालकर नहीं हिलाना है बल्कि ड्रम को पकड़ सावधानीपूर्वक हिलाना है) 7 दिन बाद टंकी से पानी निकालकर अलग कर लें और कण्डों का निकाल कर सुखा लें और अन्य उपयोग में ले लें। इस प्रकार प्राप्त पानी को निथार लें।

उपयोग-

जो पानी मिला है वो पौधों की बढ़वार के लिए बहुत ही बढ़िया पौध बढ़वार के लिए बहुत ही बढ़िया पौध बढ़वार टाॅनिक है। इस पानी को तीन गुना सादे पानी में डालकर अच्छे से मिला लें और खड़ी फसल पर स्प्रे करें। एक एकड़ के लिए लगभग 40-50 लीटर उपलों के पानी से बना 150-200 लीटर तैयार टाॅनिक प्रर्याप्त होता है। अच्छे परिणाम के लिए 7 दिन बाद पुनः एक बार और छिड़काव करने से अच्छे परिणाम प्राप्त होते है।
भण्डारण एवं अन्य सावधानियाँ
बनाने के बाद 1 माह के अन्दर उपयोग कर लें।

सोयाबीन अर्क/दूध (पौध बढ़वार टाॅनिक) :-

सोयाबीन के बीजों को गलाकर निकाले हुए दूध से बना टाॅनिक पौधों की बढ़वार के लिए एक बेहतरीन आसानी से तैयार होने वाला टाॅनिक है। इसका प्रयोग सब्जियों (विशेषकर मिर्च, टमाटर आदि में) में बहुत अच्छे परिणाम देता है।

निर्माण सामग्री:

  • 1 किग्रा सोयाबीन
  • 250 ग्राम गुड़

बनाने की विधि:

1 किग्रा सोयाबीन को 24 घण्टे के लिए पानी में भिगोकर रख दे। अच्छे से फूल जाने पर दानों को पानी से निकाल ले (पानी फेंके नही) और बारीक पीस लें। अब इसमें 250 ग्राम गुड़ को पानी में अच्छे से घोलकर मिला दे। इसमें 5 लीटर सादा पानी डालकर घोल बना लें तथा इस घोल को 3 दिनों तक मिट्टी या प्लास्टिक के बर्तन में भरकर रख दें। बर्तन का मुँह किसी कपडे़ से बंद कर दें।

उपयोग:

तीन दिन बाद इस घोल को छानकर आधा लीटर प्रति टंकी (15 लीटर पानी) में मिलाकर छिड़काव करने से पौधा अच्छी वृद्धि करता है, स्वस्थ रहता है तथा फल एवं फूलों का अधिक उत्पादन होता है।
भण्डारण एवं अन्य सावधानियाँ: बनाने के बाद एक सप्ताह के अन्दर उपयोग कर लें।

वर्मीवाष एक तरल जैविक खाद :-

बनाने की प्रक्रिया:

वर्मीवाश इकाई बड़े बैरलड्रम, बड़ी बाल्टी या मिट्टी के घडे़ का प्रयोग करके स्थापित की जा सकती है। प्लास्टिक, लोहे या सीमेन्ट के बैरल प्रयोग किये जा सकते है जिसका एक सिरा बन्द हो और एक सिरा खुला हो। सीमेन्ट का बड़ा पाईप भी प्रयोग किया जा सकता है। इस पाईप भी प्रयोग किया जा सकता है। इस पाईप को एक ऊँचे आधार पर खड़ा रखकर नीचे की तरफ से बन्द करें। नीचे की तरफ आधार के पास साईड में छेद (1 इंच चैड़ा) करें। इस छेद में टी पाईप डालकर वाशर की मदद से सील करें। अन्दर की ओर आधा इंच पाईप के छेद में नल फिट करें तथा बाहर इतना कि नीचे बर्तन आसानी से रखा जा सके। बाहर टी पाईप के छेद में नट लगायें जो कि पाईप की समय-समय पर सफाई के काम आएगा। यह नल सुविधानुसार बैरल की पेंदी में भी लगाया जा सकता है।

वर्मीवाष इकाई:

लगभग 16 दिन बाद, जब इकाई तैयार हो जाए, नल को बन्द करके पाँच लीटर क्षमता का एक बर्तन, जिसमें नीचे बारीक सुराख हों, इकाई के ऊपर लटका दें। ताकि बूँद- बूँद पानी नीचे गिरे। यह पानी धीरे-धीरे कम्पोस्ट के माध्यम से गुजरता है और ताजा वर्मीकम्पोस्ट से तत्व लेकर अपने साथ घोल लेता है। साथ ही केंचुओं के शरीर को धोकर भी पानी गुजरता है। नल को अगले दिन वर्मीवाश एकत्रित करने के लिये खोल लिया जाए। इसके बाद नल को बन्द कर दिया जाए तथा ऊपर वाले बर्तन में पानी भर दिया जाए ताकि उसी प्रकार वर्मीवाश एकत्रित करने की प्रक्रिया चलती रहे। इकाई को ऊपर से बोरी से ढ़ककर रखना चाहिये।

इकाई के ऊपरी सतह पर एकत्रित वर्मीकम्पोस्ट को समय-समय पर बाहर निकाला जा सकता है तथा गोबर व अवशेष ड़ाले जा सकते है। या जब तक पूरा बैरल भर न जाए इसी प्रकार ऊपर फसल अवशेष ड़ालते रहें तथा उसके बाद कम्पोस्ट को निकालकर दोबारा से सामग्री भरें। वर्मीवाश को इसी स्वरूप में स्टोर किया जा सकता है या धूप में सांद्रीकरण करके स्टोर कर सकते है। प्रयोग के समय इसमें पानी मिलाया जा सकता है।

उपयोग – 10 गुना पानी मिलाकर छिड़काव करने पर फल फूल में वृद्धि में होती है।